I was supposed to tell you about my drowning in nothingness...and about my sadness that will make me lose myself, but I chose to be silent because you will not understand me.
@Ek_khwaab
🤌🖤✨
@Ek_khwaab
🤌🖤✨
❤🔥1😢1
🙏3😢2
कुछ कहानियों मुझे तक ही रहे तो बेहतर है,
ज़माना उन्हें समझने के काबिल नही है अभी...।।
❤️🖤✨
@Ek_khwaab ✘ @Aestheticeyes
ज़माना उन्हें समझने के काबिल नही है अभी...।।
❤️🖤✨
@Ek_khwaab ✘ @Aestheticeyes
❤🔥8😢2🤯1
❤🔥3🔥2🤩1
गहराइयाँ मुझमे समंदर से थोड़ी ज्यादा है
किनारे बैठोगे तो छूट जाओगे....!! 🙇💔
किनारे बैठोगे तो छूट जाओगे....!! 🙇💔
❤🔥3😢1
Good morning 😅
Dukhi insaan jg rhe h
Aur hm task complete kr rhe h🥲🙂
Dukhi insaan jg rhe h
Aur hm task complete kr rhe h🥲🙂
🤡3🥴1
उनके आँसुओं में हीरे से भी ज्यादा चमक होती है,
जो दूसरों के लिए रोते है !!
जो दूसरों के लिए रोते है !!
❤🔥4😢2
Kuch bhi kaho
RCB ne Dil Jeet liya.....! 🤩
RCB ne Dil Jeet liya.....! 🤩
❤2❤🔥1
सूखे पत्तों की तरह थे हम,किसी ने समेटा
भी तो सिर्फ जलाने के लिए...🥀🥀
भी तो सिर्फ जलाने के लिए...🥀🥀
❤🔥2
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रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 4
'पूछो मेरी जाति , शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से'
रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से,
पढ़ो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प़काश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
'अर्जुन बङ़ा वीर क्षत्रिय है, तो आगे वह आवे,
क्षत्रियत्व का तेज जरा मुझको भी तो दिखलावे।
अभी छीन इस राजपुत्र के कर से तीर-कमान,
अपनी महाजाति की दूँगा मैं तुमको पहचान।'
कृपाचार्य ने कहा ' वृथा तुम क्रुद्ध हुए जाते हो,
साधारण-सी बात, उसे भी समझ नहीं पाते हो।
राजपुत्र से लड़े बिना होता हो अगर अकाज,
अर्जित करना तुम्हें चाहिये पहले कोई राज।'
कर्ण हतप्रभ हुआ तनिक, मन-ही-मन कुछ भरमाया,
सह न सका अन्याय , सुयोधन बढ़कर आगे आया।
बोला-' बड़ा पाप है करना, इस प्रकार, अपमान,
उस नर का जो दीप रहा हो सचमुच, सूर्य समान।
'मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
'जाति-जाति' का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।
'किसने देखा नहीं, कर्ण जब निकल भीड़ से आया,
अनायास आतंक एक सम्पूर्ण सभा पर छाया।
कर्ण भले ही सूत्रोपुत्र हो, अथवा श्वपच, चमार,
मलिन, मगर, इसके आगे हैं सारे राजकुमार।
ㅤㅤㅤ
🔸 🔹 🔺 🔹 🔺 🔹 🔸
── ⋅ ⋅ ── ✩ ── ⋅ ⋅ ──
#rashmirathi
रश्मिरथी संपूर्ण अनुक्रमणिका
❤️ ek_khwaab.t.me ✔️
रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 4
'पूछो मेरी जाति , शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से'
रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से,
पढ़ो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प़काश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
'अर्जुन बङ़ा वीर क्षत्रिय है, तो आगे वह आवे,
क्षत्रियत्व का तेज जरा मुझको भी तो दिखलावे।
अभी छीन इस राजपुत्र के कर से तीर-कमान,
अपनी महाजाति की दूँगा मैं तुमको पहचान।'
कृपाचार्य ने कहा ' वृथा तुम क्रुद्ध हुए जाते हो,
साधारण-सी बात, उसे भी समझ नहीं पाते हो।
राजपुत्र से लड़े बिना होता हो अगर अकाज,
अर्जित करना तुम्हें चाहिये पहले कोई राज।'
कर्ण हतप्रभ हुआ तनिक, मन-ही-मन कुछ भरमाया,
सह न सका अन्याय , सुयोधन बढ़कर आगे आया।
बोला-' बड़ा पाप है करना, इस प्रकार, अपमान,
उस नर का जो दीप रहा हो सचमुच, सूर्य समान।
'मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
'जाति-जाति' का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।
'किसने देखा नहीं, कर्ण जब निकल भीड़ से आया,
अनायास आतंक एक सम्पूर्ण सभा पर छाया।
कर्ण भले ही सूत्रोपुत्र हो, अथवा श्वपच, चमार,
मलिन, मगर, इसके आगे हैं सारे राजकुमार।
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रश्मिरथी संपूर्ण अनुक्रमणिका
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A true relationship is when someone accept your past, support your present loves you encourage your future.
Hum❤️Tum
Hum❤️Tum
❤2
तुम्हारे साथ जितना भी वक्त मिले हमें कम ही लगेगा
तुमसे राब्ता ही कुछ इस कदर है , तुम बिन हर मौसम पतझड़ ही लगेगा
तुमसे राब्ता ही कुछ इस कदर है , तुम बिन हर मौसम पतझड़ ही लगेगा
🤡5
प्रेम
आँखों की समाधि
हृदय का मोक्ष है
हम❤️तुम
आँखों की समाधि
हृदय का मोक्ष है
हम❤️तुम
❤3
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रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 5
'करना क्या अपमान ठीक है इस अनमोल रतन का,
मानवता की इस विभूति का, धरती के इस धन का।
बिना राज्य यदि नहीं वीरता का इसको अधिकार,
तो मेरी यह खुली घोषणा सुने सकल संसार।
'अंगदेश का मुकुट कर्ण के मस्तक पर धरता हूँ।
एक राज्य इस महावीर के हित अर्पित करता हूँ।'
रखा कर्ण के सिर पर उसने अपना मुकुट उतार,
गूँजा रंगभूमि में दुर्योधन का जय-जयकार।
कर्ण चकित रह गया सुयोधन की इस परम कृपा से,
फूट पड़ा मारे कृतज्ञता के भर उसे भुजा से।
दुर्योधन ने हृदय लगा कर कहा-'बन्धु! हो शान्त,
मेरे इस क्षुद्रोपहार से क्यों होता उद्भ्रान्त?
'किया कौन-सा त्याग अनोखा, दिया राज यदि तुझको!
अरे, धन्य हो जायँ प्राण, तू ग्रहण करे यदि मुझको ।'
कर्ण और गल गया,' हाय, मुझ पर भी इतना स्नेह!
वीर बन्धु! हम हुए आज से एक प्राण, दो देह।
'भरी सभा के बीच आज तूने जो मान दिया है,
पहले-पहल मुझे जीवन में जो उत्थान दिया है।
उऋण भला होऊँगा उससे चुका कौन-सा दाम?
कृपा करें दिनमान कि आऊँ तेरे कोई काम।'
घेर खड़े हो गये कर्ण को मुदित, मुग्ध पुरवासी,
होते ही हैं लोग शूरता-पूजन के अभिलाषी।
चाहे जो भी कहे द्वेष, ईर्ष्या, मिथ्या अभिमान,
जनता निज आराध्य वीर को, पर लेती पहचान।
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रश्मिरथी संपूर्ण अनुक्रमणिका
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रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 5
'करना क्या अपमान ठीक है इस अनमोल रतन का,
मानवता की इस विभूति का, धरती के इस धन का।
बिना राज्य यदि नहीं वीरता का इसको अधिकार,
तो मेरी यह खुली घोषणा सुने सकल संसार।
'अंगदेश का मुकुट कर्ण के मस्तक पर धरता हूँ।
एक राज्य इस महावीर के हित अर्पित करता हूँ।'
रखा कर्ण के सिर पर उसने अपना मुकुट उतार,
गूँजा रंगभूमि में दुर्योधन का जय-जयकार।
कर्ण चकित रह गया सुयोधन की इस परम कृपा से,
फूट पड़ा मारे कृतज्ञता के भर उसे भुजा से।
दुर्योधन ने हृदय लगा कर कहा-'बन्धु! हो शान्त,
मेरे इस क्षुद्रोपहार से क्यों होता उद्भ्रान्त?
'किया कौन-सा त्याग अनोखा, दिया राज यदि तुझको!
अरे, धन्य हो जायँ प्राण, तू ग्रहण करे यदि मुझको ।'
कर्ण और गल गया,' हाय, मुझ पर भी इतना स्नेह!
वीर बन्धु! हम हुए आज से एक प्राण, दो देह।
'भरी सभा के बीच आज तूने जो मान दिया है,
पहले-पहल मुझे जीवन में जो उत्थान दिया है।
उऋण भला होऊँगा उससे चुका कौन-सा दाम?
कृपा करें दिनमान कि आऊँ तेरे कोई काम।'
घेर खड़े हो गये कर्ण को मुदित, मुग्ध पुरवासी,
होते ही हैं लोग शूरता-पूजन के अभिलाषी।
चाहे जो भी कहे द्वेष, ईर्ष्या, मिथ्या अभिमान,
जनता निज आराध्य वीर को, पर लेती पहचान।
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रश्मिरथी संपूर्ण अनुक्रमणिका
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Real communication happens in silence..........
Hum❤️Tum
Hum❤️Tum
❤2
आखरी वक्त तक आपके साथ कौन रहता है ?
1) परिवार
2) प्रेम
3) दोस्त
सब अपनी अपनी राय के साथ बताए पर उस बात का मतलब होना चाहिए ऐसे ही नही बोलना है कुछ।
1) परिवार
2) प्रेम
3) दोस्त
सब अपनी अपनी राय के साथ बताए पर उस बात का मतलब होना चाहिए ऐसे ही नही बोलना है कुछ।
मसलें तो बहुत है लेकिन,जिंदगी हैं चलता हैं..😊
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