इतना बुरा तो तेरा भी अंजाम नहीं है
सूरज जो सवेरे था वही शाम नहीं है
पहचान अगर बन न सकी तो फिर क्या ग़म
कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है
आकाश भी धरती की तरह घूम रहा है
दुनिया में किसी चीज़ को आराम नहीं है
मत सोच कि क्या तूने दिया तुझको मिला क्या
शायर है जमा-ख़र्च तेरा काम नहीं है
ये शुक्र मना इतना तो इंसाफ़ हुआ है
तुझ पर ही तेरे क़त्ल का इलजाम नहीं है
माना वो मेहरबान है सुनता है सभी की
मत भूल कि उसका भी करम आम नहीं है
उठने दे जो उठता है धुआँ दिल की गली से
बस्ती वो कहाँ है जहाँ कोहराम नहीं है
टपकेगा रुबाई से तेरी ख़ून या आँसू
राही है तेरा नाम तू ख़ैयाम नहीं है।
#Gazal
~ बाल स्वरूप राही
सूरज जो सवेरे था वही शाम नहीं है
पहचान अगर बन न सकी तो फिर क्या ग़म
कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है
आकाश भी धरती की तरह घूम रहा है
दुनिया में किसी चीज़ को आराम नहीं है
मत सोच कि क्या तूने दिया तुझको मिला क्या
शायर है जमा-ख़र्च तेरा काम नहीं है
ये शुक्र मना इतना तो इंसाफ़ हुआ है
तुझ पर ही तेरे क़त्ल का इलजाम नहीं है
माना वो मेहरबान है सुनता है सभी की
मत भूल कि उसका भी करम आम नहीं है
उठने दे जो उठता है धुआँ दिल की गली से
बस्ती वो कहाँ है जहाँ कोहराम नहीं है
टपकेगा रुबाई से तेरी ख़ून या आँसू
राही है तेरा नाम तू ख़ैयाम नहीं है।
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~ बाल स्वरूप राही
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अगर आप दिल से हमारे न होते
तो नज़रों से इतने इशारे न होते
नहीं प्यार होता जो उनको किसीसे
तो आँचल में ये चाँद-तारे न होते
बहुत शोर था उनकी दरियादिली का
हमें देखकर यों किनारे न होते
कहाँ से ग़ज़ल प्यार की यह उतरती
जो हम उन निगाहों के मारे न होते
गुलाब! आप खिलते जो राहों में उनकी
तो ऐसे कभी बेसहारे न होते
~ गुलाब खंडेलवाल
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तो नज़रों से इतने इशारे न होते
नहीं प्यार होता जो उनको किसीसे
तो आँचल में ये चाँद-तारे न होते
बहुत शोर था उनकी दरियादिली का
हमें देखकर यों किनारे न होते
कहाँ से ग़ज़ल प्यार की यह उतरती
जो हम उन निगाहों के मारे न होते
गुलाब! आप खिलते जो राहों में उनकी
तो ऐसे कभी बेसहारे न होते
~ गुलाब खंडेलवाल
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अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले,
तवाफ़ करता हुआ मौसमे-बहार चले।
लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले,
यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बेशुमार चले।
नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे,
कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले।
ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है,
यहीं संभाल के पहना,यहीं उतार चले।
ये जुगनुओं से भरा आस्माँ जहाँ तक है,
वहाँ तलक तेरी नज़रों का इक़्तिदार चले।
यही तो इक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की,
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले।🫶 💕
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तवाफ़ करता हुआ मौसमे-बहार चले।
लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले,
यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बेशुमार चले।
नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे,
कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले।
ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है,
यहीं संभाल के पहना,यहीं उतार चले।
ये जुगनुओं से भरा आस्माँ जहाँ तक है,
वहाँ तलक तेरी नज़रों का इक़्तिदार चले।
यही तो इक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की,
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले।
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